A Ghazal written by Dushyant Kumar during Emergency in Our Country in 1976-77

This Ghazal has been written by 'Dushyant Kumar' duing the time of Imergency in 70's you can find these lines relevant to current days too.

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है

ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए
यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो—
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है

मस्लहत—आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है

इस क़दर पाबन्दी—ए—मज़हब कि सदक़े आपके
जब से आज़ादी मिली है मुल्क़ में रमज़ान है

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है

- ' दुष्यंत कुमार '

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Disqus for i LiKE iT

Please Leave your comments